बहुत दिनों बाद मिले थे, मिले क्या थे समझिये जैसे अन्धे को आखें और प्यासे को पानी मिल गया हो! इतने दिनों बाद उनसे मिल कर और उनकी हालत देख कर दिल भर आया! पुरानी प्यास फिर जग गयी और मुझे उनसे अपनी पहली मुलाकात याद आ गयी!
वो भी क्या दिन था, जब यों ही अपनी पत्नी की खरीदारी के बीच मै पत्नी को बेहद नापसन्द एक सब्जी की तरह इधर उधर देख रहा था! (वैसे भी कितने लोगों की हिम्मत होती है, बीवी की खरीदारी के बीच चूं चां करने की)!
मेरी किस्मत का जोर था तभी तो एक दुकान पर उनको देखते ही मेरा दिल जोर जोर से धडकनें लगा, पर बीवी की तेज टेढी नजर को देख कर दिल के अरमां जैसे प्रकट हुये थे वैसे ही गायब हो गये!
पर पुराना प्यार और पुराना मर्ज जल्दी पीछा नहीं छोडता, कई दिन की जद्दोजहद के बाद आखिर सबसे लड झगड कर हम उनको साथ लेकर घर आ ही गये! अपनी सौतन को देख कर बीवी आग बबूला हो गयी, पर वो मेरी दो वक्त की रोटी से ज्यादा कुछ छीन नहीं पायी!
हम उनको अपनी बाहों में लिये वक्त गुजारनें लगे, और घर वालों का गुस्सा उबाल खाता रहा! किसी नयी नवेली के लिये इतना प्यार ठीक था, लेकिन अब तक उनको घर आये हुये काफी वक्त हो चुका था, पर हमारा जुनून कम ही नहीं हो रहा था!
घर वालों ने आखिर उनके लिये हमारी टक्कर का एक आशिक ढूढ निकाला, जिनको धीरे धीरे चिढ कर हम 'चाटूजी' कहने लगे, शुरू शुरू में हमें बडा अच्छे लगे! एक दिन कई कसमें वादे देकर 'चाटूजी' ने उनको हमसे एक रात के लिये उधार मॉग लिया! बीवी की चुभती निगाहों से बचने के लिये हमने दिल पर पत्थर रख कर उनको 'चाटूजी' को सौंप दिया!
एक दिन तो क्या जब महीनों तक वो वापस नहीं आयीं, तब हमको सारी चाल समझ आ गयी, और एक दिन बीवी और घर वालों से हजार झगडे कर के हम उनको बडी बुरी हालत में वापस ले आये!
अरे अरे अरे, आप उनको अपनी 'दूसरी भाभीजान' ना समझें, वो मेरी सबसे प्यारी किताब है, जिसको मैनें कवर चढा कर फिर पहले जैसा सुन्दर बना लिया है, पर अब मैं उसको किसी को भी नहीं दूंगा!!!
आपको भी नहीं...
हूंह...
source:Story by Poonam Mishra
वो भी क्या दिन था, जब यों ही अपनी पत्नी की खरीदारी के बीच मै पत्नी को बेहद नापसन्द एक सब्जी की तरह इधर उधर देख रहा था! (वैसे भी कितने लोगों की हिम्मत होती है, बीवी की खरीदारी के बीच चूं चां करने की)!
मेरी किस्मत का जोर था तभी तो एक दुकान पर उनको देखते ही मेरा दिल जोर जोर से धडकनें लगा, पर बीवी की तेज टेढी नजर को देख कर दिल के अरमां जैसे प्रकट हुये थे वैसे ही गायब हो गये!
पर पुराना प्यार और पुराना मर्ज जल्दी पीछा नहीं छोडता, कई दिन की जद्दोजहद के बाद आखिर सबसे लड झगड कर हम उनको साथ लेकर घर आ ही गये! अपनी सौतन को देख कर बीवी आग बबूला हो गयी, पर वो मेरी दो वक्त की रोटी से ज्यादा कुछ छीन नहीं पायी!
हम उनको अपनी बाहों में लिये वक्त गुजारनें लगे, और घर वालों का गुस्सा उबाल खाता रहा! किसी नयी नवेली के लिये इतना प्यार ठीक था, लेकिन अब तक उनको घर आये हुये काफी वक्त हो चुका था, पर हमारा जुनून कम ही नहीं हो रहा था!
घर वालों ने आखिर उनके लिये हमारी टक्कर का एक आशिक ढूढ निकाला, जिनको धीरे धीरे चिढ कर हम 'चाटूजी' कहने लगे, शुरू शुरू में हमें बडा अच्छे लगे! एक दिन कई कसमें वादे देकर 'चाटूजी' ने उनको हमसे एक रात के लिये उधार मॉग लिया! बीवी की चुभती निगाहों से बचने के लिये हमने दिल पर पत्थर रख कर उनको 'चाटूजी' को सौंप दिया!
एक दिन तो क्या जब महीनों तक वो वापस नहीं आयीं, तब हमको सारी चाल समझ आ गयी, और एक दिन बीवी और घर वालों से हजार झगडे कर के हम उनको बडी बुरी हालत में वापस ले आये!
अरे अरे अरे, आप उनको अपनी 'दूसरी भाभीजान' ना समझें, वो मेरी सबसे प्यारी किताब है, जिसको मैनें कवर चढा कर फिर पहले जैसा सुन्दर बना लिया है, पर अब मैं उसको किसी को भी नहीं दूंगा!!!
आपको भी नहीं...
हूंह...
source:Story by Poonam Mishra
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